अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट में हुआ था। वे मुगल सम्राट हुमायूं और हमीदा बानू बेगम के पुत्र थे। 1556 में, पानीपत की दूसरी लड़ाई में अफगान शासक हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को हराने के बाद, अकबर को 14 फरवरी 1556 को 14 वर्ष की आयु में बादशाह घोषित किया गया। उस समय वे बहुत युवा थे, इसलिए उनके संरक्षक और सलाहकार बैरम खां ने प्रारंभिक वर्षों में शासन का भार संभाला। बैरम खां ने अकबर के लिए प्रशासनिक ढांचे को तैयार किया और साम्राज्य की नींव को मजबूत किया। 1562 में, अकबर ने स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरू किया और बैरम खां को शासन से अलग कर दिया।
अकबर का शासनकाल मुग़ल साम्राज्य के व्यापक विस्तार का समय था। उन्होंने कई सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया, जिनके परिणामस्वरूप भारत के बड़े हिस्से को मुग़ल साम्राज्य के अधीन किया गया।
- मालवा विजय (1561): अकबर ने 1561 में मालवा पर विजय प्राप्त की, जहाँ बाजबहादुर शासक था, जो अपने संगीत प्रेम के लिए प्रसिद्ध था। बाजबहादुर को हराकर अकबर ने मालवा को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया।
- गोंडवाना विजय (1564): मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में अकबर ने 1564 में रानी दुर्गावती के खिलाफ लड़ाई लड़ी। रानी दुर्गावती ने अकबर के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया, लेकिन अंततः वीरगति को प्राप्त हुई और गोंडवाना पर मुगलों का अधिकार स्थापित हो गया।
- राजपूत नीति और संघर्ष: अकबर ने राजपूतों के साथ वैवाहिक और राजनीतिक संबंध स्थापित किए। उन्होंने आमेर के राजा भारमल की पुत्री से विवाह किया और राजा मानसिंह तथा भगवानदास को अपने दरबार में महत्वपूर्ण स्थान दिया। अकबर की इस नीति ने राजपूतों को उनके साथ मिलकर काम करने के लिए प्रेरित किया, जिससे मुग़ल साम्राज्य की स्थिरता और सुरक्षा को बल मिला।
- मारवाड़, बीकानेर और जैसलमेर की अधीनता (1570): 1570 में मारवाड़, बीकानेर और जैसलमेर के राजपूत शासकों ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली, जिससे पश्चिमी भारत में अकबर की पकड़ और मजबूत हो गई।
- गुजरात और बंगाल विजय (1572-76): गुजरात को 1572 में और बंगाल को 1576 में अपने अधीन कर अकबर ने पश्चिम और पूर्वी भारत में अपनी स्थिति को और मजबूत किया। बंगाल की विजय के बाद अकबर का साम्राज्य लगभग पूरे उत्तर भारत में फैल गया।
- दक्षिण भारत के विजय अभियान: अकबर ने 1590 के दशक में दक्षिण भारत की ओर अभियान शुरू किया और अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुंडा जैसे क्षेत्रों में अपनी शक्ति का विस्तार किया। हालाँकि पूरी तरह से दक्षिण भारत को अधीन करने में उन्हें सफलता नहीं मिली, फिर भी उन्होंने उत्तरी और मध्य भारत के अधिकांश हिस्सों पर अपनी पकड़ बना ली।
अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति को अपनाया और इसे अपने शासनकाल की एक महत्वपूर्ण विशेषता बनाया। उन्होंने सभी धर्मों के प्रति समानता और सम्मान की नीति "सुलह-ए-कुल" (सभी के लिए शांति) को प्रोत्साहित किया।
- जज़िया कर का उन्मूलन (1564): अकबर ने हिंदुओं से लिया जाने वाला जज़िया कर समाप्त कर दिया, जो गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाता था। यह कदम धार्मिक सहिष्णुता की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन था।
- इबादतखाना की स्थापना (1575): अकबर ने विभिन्न धर्मों के विद्वानों और संतों के साथ विचार-विमर्श के लिए फतेहपुर सीकरी में "इबादतखाना" की स्थापना की। यहाँ उन्होंने इस्लाम, हिंदू, जैन, पारसी, और ईसाई धर्म के विद्वानों के साथ चर्चा की और सभी धर्मों के प्रति सम्मान जताया।
- दीन-ए-इलाही का प्रारंभ: अकबर ने 1582 में "दीन-ए-इलाही" नामक एक नए धार्मिक दर्शन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य विभिन्न धर्मों की अच्छाइयों को मिलाकर एक सर्वमान्य धर्म की स्थापना करना था। हालाँकि यह धर्म बहुत सफल नहीं हुआ और अकबर के बाद इसका प्रभाव समाप्त हो गया।
अकबर के शासनकाल के दौरान प्रशासनिक और सैन्य सुधारों को भी काफी महत्व दिया गया। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत और संगठित किया।
- मनसबदारी प्रणाली: अकबर ने मनसबदारी प्रणाली लागू की, जिसके तहत सेना और प्रशासन के अधिकारियों को रैंक और जमीनें दी जाती थीं। यह प्रणाली मुग़ल साम्राज्य में सैन्य और प्रशासनिक नियंत्रण को मजबूत बनाने में सहायक साबित हुई।
- सेंट्रलाइज्ड प्रशासन: अकबर ने एक केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली विकसित की, जिसमें प्रांतीय प्रशासनिक इकाइयों का गठन किया गया। इसके अलावा, उन्होंने दीवान-ए-आम (जनता की अदालत) और दीवान-ए-खास (विशेष अदालत) जैसी संस्थाओं की स्थापना की, जो न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों में सहायक रहीं।
- अकबर की सेना: अकबर ने अपने शासनकाल में सेना को काफी मजबूत किया। उन्होंने न केवल अपनी सेना को आधुनिक हथियारों और रणनीतियों से लैस किया, बल्कि विभिन्न जातियों और धर्मों के लोगों को सेना में भर्ती किया, जिससे सेना में विविधता आई और यह अधिक प्रभावी बनी।
अकबर के शासनकाल के दौरान कला, संस्कृति और साहित्य का भी महत्वपूर्ण विकास हुआ। उन्होंने न केवल मुग़ल चित्रकला और वास्तुकला को बढ़ावा दिया बल्कि संगीत, साहित्य और कविता को भी संरक्षण दिया।
- मुग़ल चित्रकला: अकबर ने मुग़ल चित्रकला को संरक्षित किया और इसे प्रोत्साहन दिया। उनके दरबार में उत्कृष्ट कलाकार जैसे अब्दुल समद और मीर सैय्यद अली थे, जिन्होंने मुग़ल चित्रकला को एक नई दिशा दी।
- संगीत और साहित्य: अकबर का दरबार संगीत और साहित्य से भरा हुआ था। तानसेन जैसे महान संगीतकार उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अबुल फज़ल और फैजी जैसे विद्वानों ने अकबरनामा और आइने-अकबरी जैसी महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की, जो अकबर के जीवन और शासनकाल का दस्तावेज़ हैं।
- वास्तुकला: अकबर ने फतेहपुर सीकरी, आगरा किला, और इलाहाबाद किला जैसे भव्य निर्माण कार्य करवाए। इन इमारतों में हिंदू और इस्लामी वास्तुकला के अद्वितीय मिश्रण को देखा जा सकता है।
अकबर के अंतिम वर्षों में उनके बेटे सलीम (जहाँगीर) के साथ कुछ तनाव उत्पन्न हुए, लेकिन 1605 में उनकी मृत्यु से पहले यह विवाद सुलझा लिया गया। अकबर का निधन 25 अक्टूबर 1605 को हुआ और उनके पुत्र जहाँगीर ने उन्हें उत्तराधिकारी के रूप में सफल किया। अकबर की मृत्यु के बाद भी उनकी नीतियों और विचारों का प्रभाव लंबे समय तक मुग़ल साम्राज्य पर बना रहा।
अकबर महान का शासनकाल भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम युग माना जाता है। उन्होंने न केवल मुग़ल साम्राज्य का विस्तार किया बल्कि धार्मिक सहिष्णुता, कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी अमूल्य योगदान दिया। अकबर की नीतियाँ और उनके द्वारा स्थापित प्रशासनिक ढांचा लंबे समय तक मुग़ल साम्राज्य की स्थिरता का आधार बने रहे, जिससे उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान शासक के रूप में याद किया जाता है।