अनुसंधान की प्ररचना या अनुसंधान अभिकल्प वह प्रणाली या योजना है जो अनुसंधान के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अनुसंधान प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं को व्यवस्थित करती है। यह अनुसंधान की रूपरेखा है, जो शोधकर्ता को यह निर्णय लेने में सहायता करती है कि किस प्रकार से डेटा एकत्रित करना है, कैसे उसका विश्लेषण करना है, और अंततः निष्कर्ष कैसे निकालना है। अनुसंधान की प्ररचना यह सुनिश्चित करती है कि अनुसंधान का प्रत्येक चरण स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण हो, जिससे अध्ययन की वैधता और विश्वसनीयता सुनिश्चित हो सके।
पी. वी. यंग: "अनुसंधान अभिकल्प एक वैज्ञानिक मॉडल को विभिन्न शोध प्रणालियों में अनुवादित करने का परिणाम है। यह एक विस्तृत योजना है जो अनुसंधान की दिशा और विधियों का निर्धारण करती है।"
सचमैन: "सामाजिक अनुसंधान के मध्य व्यावहारिक निर्धारणों के साथ किए गए समझौते का प्रस्तुतीकरण अनुसंधान अभिकल्प के लिए किया जाता है। यह एक ऐसा ढांचा है जो यह निर्धारित करता है कि अनुसंधान कैसे संचालित किया जाएगा और किस प्रकार के डेटा एकत्रित किए जाएंगे।"
कैरोल और कैराल: "अनुसंधान अभिकल्प एक कार्य योजना है। यह अनुसंधानकर्ता को यह तय करने में मदद करता है कि किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना है और उनके समाधान के लिए किस प्रकार के दृष्टिकोण अपनाने हैं।"
प्रयोगात्मक अनुसंधान अभिकल्प एक उन्नत और विस्तृत विधि है जिसका उद्देश्य सामाजिक घटनाओं के बीच कारण-प्रभाव संबंधों की पहचान करना है। इसमें सामाजिक समस्याओं का अध्ययन नियंत्रित परिस्थितियों में किया जाता है, जैसे कि प्राकृतिक विज्ञानों में किया जाता है। इसमें स्वतंत्र चर (Independent Variable) और आश्रित चर (Dependent Variable) के बीच संबंध की जांच की जाती है। स्वतंत्र चर वह होता है जिसे शोधकर्ता नियंत्रित और हेरफेर कर सकते हैं, जबकि आश्रित चर वह परिणाम है जिसे मापा जाता है।
जहोड़ा: "प्रयोग एक ऐसी प्रणाली है जिसमें किसी कल्पना की सार्थकता के बारे में निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। यह व्यवस्थित ढंग से प्रमाण एकत्र करने की प्रक्रिया है।"
ग्रीनवुड: "प्रयोग-कार्य-कारण संबंध को व्यक्त करने वाली उपकल्पना के परीक्षण की विधि है। इसमें नियंत्रित परिस्थितियों में कार्य-कारण संबंधों का मूल्यांकन किया जाता है।"
चेपियन: "प्रयोगात्मक अभिकल्पना की धारणा नियंत्रण की दशाओं में अवलोकन के द्वारा मानव संबंधों के व्यवस्थित अध्ययन की ओर संकेत करती है।"
परीक्षणात्मक अनुसंधान में सबसे महत्वपूर्ण तत्व नियंत्रण है। इसका अर्थ है कि स्वतंत्र चर (Independent Variables) के प्रभाव का मूल्यांकन करते समय अन्य सभी संभावित प्रभावों को नियंत्रित किया जाता है। यह नियंत्रण सुनिश्चित करता है कि कोई भी बाहरी कारक परिणामों को प्रभावित न करे। नियंत्रण को बनाए रखने के लिए, शोधकर्ता अक्सर नियंत्रित समूहों का उपयोग करते हैं, जिन पर स्वतंत्र चर का प्रभाव नहीं डाला जाता है। इससे शोधकर्ता यह जान सकते हैं कि परिवर्तन का कारण वास्तव में स्वतंत्र चर है या कोई अन्य कारक।
परीक्षणात्मक अनुसंधान में, स्वतंत्र और आश्रित चर के बीच का संबंध महत्वपूर्ण होता है। स्वतंत्र चर वह तत्व है जिसे शोधकर्ता बदलते हैं या हेरफेर करते हैं, जबकि आश्रित चर वह परिणाम है जिसे मापा जाता है। इस डिजाइन में, स्वतंत्र चर का प्रभाव आश्रित चर पर देखा जाता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि आश्रित चर में होने वाले बदलाव स्वतंत्र चर के कारण होते हैं, न कि किसी अन्य कारक के।
परीक्षणात्मक अनुसंधान में, आमतौर पर दो समूह बनाए जाते हैं: प्रयोगात्मक समूह और नियंत्रण समूह। प्रयोगात्मक समूह वह होता है जिस पर स्वतंत्र चर का प्रभाव डाला जाता है, जबकि नियंत्रण समूह वह होता है जो स्वतंत्र चर के प्रभाव से मुक्त रहता है। नियंत्रण समूह की सहायता से यह पता लगाया जाता है कि क्या स्वतंत्र चर ने आश्रित चर पर वास्तविक प्रभाव डाला है या नहीं।
परीक्षणात्मक अभिकल्प के माध्यम से आकस्मिक संबंध (cause-and-effect relationship) की पहचान की जा सकती है। यह अभिकल्प शोधकर्ताओं को यह जांचने की अनुमति देता है कि कैसे एक या अधिक स्वतंत्र चर आश्रित चर पर प्रभाव डालते हैं। इसके माध्यम से यह निर्धारित किया जा सकता है कि क्या कोई परिवर्तन आश्रित चर में स्वतंत्र चर के कारण हुआ है या नहीं। यह विशेषता इसे अन्य अनुसंधान विधियों से अलग करती है, जो केवल सहसंबंध (correlation) की जांच करती हैं।
प्रयोगात्मक अनुसंधान में, अध्ययन के विषयों को यादृच्छिक रूप से (randomly) प्रयोगात्मक और नियंत्रण समूहों में विभाजित किया जाता है। इस प्रक्रिया को विषमलैंगिकता कहा जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि दोनों समूह समान रूप से विविध हों और किसी भी प्रकार की पूर्वाग्रह (bias) को कम करता है। विषमलैंगिकता के माध्यम से सभी संभावित विचलन (confounding variables) को समान रूप से वितरित किया जाता है, जिससे निष्कर्ष अधिक विश्वसनीय होते हैं।
परीक्षणात्मक अभिकल्प में, नियंत्रण की उच्च डिग्री के कारण प्राकृतिकता में कमी हो सकती है। कभी-कभी अध्ययन के लिए बनाए गए कृत्रिम वातावरण (artificial environment) में अध्ययन किया जाता है, जो वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से भिन्न हो सकता है। इससे अध्ययन के परिणाम वास्तविक जीवन में किस हद तक लागू होते हैं, यह सवाल उठ सकता है। हालांकि, इस कमी के बावजूद, यह विधि अध्ययन में उच्च आंतरिक वैधता (internal validity) सुनिश्चित करती है।
प्रयोगात्मक अभिकल्प में प्रयोगात्मक त्रुटियाँ संभावित हैं। ये त्रुटियाँ डिजाइन, निष्पादन या विश्लेषण में गलतियों के कारण हो सकती हैं। यह महत्वपूर्ण है कि शोधकर्ता इन त्रुटियों को पहचानें और उन्हें न्यूनतम करें ताकि निष्कर्ष की वैधता प्रभावित न हो।
प्रयोगात्मक अनुसंधान में नैतिक मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं। किसी भी प्रयोग के दौरान, शोधकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना होता है कि अध्ययन के विषयों के साथ नैतिकता और मानवीय गरिमा का पालन हो। इसमें प्रतिभागियों की सहमति, गोपनीयता और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना शामिल है।
परीक्षणात्मक अभिकल्प की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसकी आवर्तनीयता है। यदि किसी अध्ययन को बार-बार किया जा सकता है और समान परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, तो इसे उच्च आवर्तनीयता माना जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि अध्ययन के निष्कर्ष विश्वसनीय और मान्य हैं।
परीक्षणात्मक अनुसंधान में डेटा का सांख्यिकीय विश्लेषण महत्वपूर्ण होता है। यह विश्लेषण यह सुनिश्चित करता है कि निष्कर्ष सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण हैं और केवल संयोग या गलती का परिणाम नहीं हैं। इसके माध्यम से स्वतंत्र और आश्रित चर के बीच संबंध की शक्ति और दिशा का निर्धारण किया जा सकता है।
केवल उत्तरोगामी प्रयोग में, अध्ययन की शुरुआत में किसी भी प्रकार के पूर्व अवलोकन या मापन (pre-measurement) नहीं किया जाता है। इस प्रकार के प्रयोग में, दो या दो से अधिक समूहों का चयन किया जाता है। इन समूहों को यादृच्छिक रूप से या पूर्व निर्धारित मानदंडों के आधार पर प्रयोगात्मक और नियंत्रण समूहों में विभाजित किया जाता है।
प्रयोगात्मक समूह (Experimental Group): इस समूह को स्वतंत्र चर (Independent Variable) के संपर्क में लाया जाता है।
नियंत्रण समूह (Control Group): इस समूह को स्वतंत्र चर के संपर्क से बाहर रखा जाता है और इसे नियंत्रित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई बाहरी प्रभाव परिणामों को प्रभावित न करे।
विशेषताएँ:
इस डिजाइन में, अध्ययन का फोकस केवल परीक्षण के बाद (post-test) परिणामों पर होता है।
इस विधि का लाभ यह है कि इसे सरलता से संचालित किया जा सकता है, लेकिन यह पूर्व अवलोकन की कमी के कारण परिवर्तन के वास्तविक कारणों का निर्धारण करने में कठिनाई पैदा कर सकता है।
पूर्व उत्तरोगामी डिजाइन में, प्रयोग के आरंभ से पहले और बाद में दोनों समय पर अवलोकन या मापन किया जाता है।
पूर्व अवलोकन (Pre-Test): अध्ययन की शुरुआत में, दोनों समूहों का अवलोकन किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे मूल रूप से समान स्तर पर हैं।
उत्तर अवलोकन (Post-Test): प्रयोग के बाद, पुनः अवलोकन किया जाता है और दोनों समूहों के परिणामों की तुलना की जाती है।
विशेषताएँ:
यह डिजाइन स्पष्ट रूप से परिवर्तन के कारण-प्रभाव संबंध का निर्धारण करने में मदद करता है, क्योंकि यह स्वतंत्र चर के प्रभाव से पहले और बाद की स्थितियों को मापता है।
यह डिजाइन उच्च स्तर की वैधता प्रदान करता है, लेकिन इसके लिए अधिक संसाधनों और समय की आवश्यकता हो सकती है।
कार्यांतर प्रयोग उन घटनाओं या समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उपयोग किया जाता है जिनकी पुनरावृत्ति संभव नहीं होती। इसमें पिछले समय में घटित घटनाओं का विश्लेषण किया जाता है।
समूह चयन: शोधकर्ता उन समूहों का चयन करता है जिनमें घटना घटित हो चुकी है और उन समूहों का चयन करता है जिनमें घटना नहीं हुई है।
तुलनात्मक विश्लेषण: इन समूहों के बीच तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है ताकि यह समझा जा सके कि किस कारण से एक समूह में घटना घटी और दूसरे में नहीं।
विशेषताएँ:
इस विधि का उपयोग अक्सर ऐतिहासिक घटनाओं या विशिष्ट परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए किया जाता है।
कार्यांतर प्रयोग में, शोधकर्ता वर्तमान घटनाओं के बजाय अतीत की घटनाओं का अध्ययन करते हैं, जिससे यह अध्ययन विशिष्ट घटनाओं के संदर्भ में सीमित हो सकता है।
समानांतर समूह डिज़ाइन में, दो या अधिक समूहों का चयन किया जाता है, और प्रत्येक समूह को एक विशेष उपचार या हस्तक्षेप (intervention) दिया जाता है।
प्रयोगात्मक समूह: इसे नए उपचार या हस्तक्षेप का अनुभव कराया जाता है।
नियंत्रण समूह: इसे पारंपरिक या किसी भी प्रकार के उपचार से वंचित रखा जाता है।
विशेषताएँ:
यह डिज़ाइन विभिन्न उपचारों के प्रभाव की तुलना करने के लिए उपयुक्त है।
इस डिजाइन का उपयोग अक्सर चिकित्सा अनुसंधान में विभिन्न उपचारों की प्रभावकारिता का आकलन करने के लिए किया जाता है।
क्रॉसओवर डिज़ाइन में, सभी प्रतिभागियों को अलग-अलग समय पर दोनों, नियंत्रण और उपचार की स्थितियों में रखा जाता है।
पहला चरण: प्रतिभागियों को दो समूहों में विभाजित किया जाता है; एक समूह को उपचार दिया जाता है और दूसरे को प्लेसबो (Placebo) या कोई उपचार नहीं दिया जाता।
दूसरा चरण: समयांतराल के बाद, समूहों को स्विच किया जाता है; अब पहले समूह को प्लेसबो और दूसरे समूह को उपचार दिया जाता है।
विशेषताएँ:
यह डिज़ाइन प्रत्येक प्रतिभागी को स्वयं का नियंत्रण (self-control) बनाने की अनुमति देता है।
हालांकि, यह डिज़ाइन उन उपचारों के लिए उपयुक्त नहीं है जिनके दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं।
कारक डिज़ाइन में, शोधकर्ता दो या अधिक स्वतंत्र चरों का परीक्षण करते हैं और यह देखते हैं कि वे एक दूसरे के साथ कैसे संपर्क करते हैं।
स्वतंत्र चर: प्रत्येक स्वतंत्र चर को कारक कहा जाता है, और प्रत्येक कारक के विभिन्न स्तर होते हैं।
कारक संयोजन: सभी संभावित संयोजनों को जांचा जाता है ताकि यह समझा जा सके कि कैसे विभिन्न कारक एक दूसरे के प्रभाव को प्रभावित करते हैं।
विशेषताएँ:
यह डिज़ाइन शोधकर्ताओं को विभिन्न कारकों के बीच जटिल बातचीत का अध्ययन करने की अनुमति देता है।
इस विधि का उपयोग अक्सर तब किया जाता है जब शोधकर्ताओं को यह समझने की आवश्यकता होती है कि विभिन्न कारक एक दूसरे के प्रभाव को कैसे प्रभावित करते हैं।
क्वासी-प्रयोगात्मक डिज़ाइन में, यादृच्छिक असाइनमेंट (random assignment) संभव नहीं होता है, लेकिन शोधकर्ता अभी भी स्वतंत्र चर के प्रभाव का अध्ययन करने की कोशिश करते हैं।
समूह चयन: समूहों का चयन यादृच्छिक नहीं होता, इसलिए यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है कि समूह मूल रूप से समान हैं।
नियंत्रण की कमी: इस डिजाइन में अन्य बाहरी कारकों पर कम नियंत्रण होता है।
विशेषताएँ:
यह डिज़ाइन अधिक लचीला होता है और वास्तविक दुनिया की स्थितियों में अधिक आसानी से लागू किया जा सकता है।
हालांकि, इससे वैधता में कमी आ सकती है क्योंकि समूहों में अंतर को नियंत्रित करना कठिन हो सकता है।
प्रयोगात्मक अध्ययन में स्वतंत्र चर (independent variables) को हेरफेर (manipulate) करते समय, अन्य सभी संभावित प्रभावों को नियंत्रित करना आवश्यक होता है। लेकिन वास्तविक दुनिया की जटिलताओं के कारण, यह नियंत्रण हमेशा संभव नहीं होता। उदाहरण के लिए:
पर्यावरणीय कारक: मौसम, स्थान, और अन्य बाहरी तत्वों पर पूरी तरह से नियंत्रण रखना कठिन होता है।
मानव व्यवहार: मानव प्रतिभागियों के मामले में, उनके व्यक्तिगत मतभेद और मानसिक अवस्थाएँ परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं।
प्रयोगात्मक अध्ययन में अक्सर नैतिक चिंताएँ होती हैं, विशेष रूप से जब मानव प्रतिभागियों का अध्ययन किया जा रहा हो। नैतिक दिशानिर्देशों का पालन करना आवश्यक होता है, जिसमें शामिल हैं:
सहमति (Consent): प्रतिभागियों को पूरी जानकारी देने के बाद उनके सहमति प्राप्त करना आवश्यक है।
गोपनीयता (Confidentiality): प्रतिभागियों की जानकारी को गोपनीय रखना आवश्यक होता है।
हस्तक्षेप (Intervention): कुछ हस्तक्षेप या प्रयोगात्मक स्थितियाँ प्रतिभागियों के लिए हानिकारक हो सकती हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य या कल्याण प्रभावित हो सकता है।
प्रयोगात्मक अध्ययन के परिणाम अक्सर विशिष्ट सेटिंग्स या नमूने पर आधारित होते हैं, जिससे उन्हें व्यापक जनसंख्या पर लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सीमित नमूना (Limited Sample): प्रयोगशाला स्थितियों में अध्ययन किए गए परिणाम हमेशा वास्तविक जीवन में लागू नहीं हो सकते, क्योंकि प्रयोगशाला के नियंत्रित वातावरण और वास्तविक जीवन की जटिलताओं में अंतर होता है।
आबादी की विविधता (Diversity of Population): प्रयोगात्मक अध्ययन में चयनित नमूना सामान्य आबादी का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, जिससे परिणामों की सामान्यता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।
प्रयोगात्मक अध्ययन अक्सर नियंत्रित वातावरण में किए जाते हैं, जो वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से भिन्न होते हैं। यह कृत्रिमता (artificiality) निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है:
प्राकृतिक व्यवहार में बाधा: प्रतिभागी नियंत्रित सेटिंग्स में सामान्य रूप से व्यवहार नहीं कर सकते हैं, जिससे उनके वास्तविक व्यवहार का आकलन कठिन हो जाता है।
प्रयोगात्मक स्थिति का प्रभाव: प्रयोगशाला स्थितियों में, प्रतिभागी अपनी भूमिका को समझ सकते हैं और अपने व्यवहार को इस समझ के अनुसार बदल सकते हैं, जिसे 'हॉथॉर्न प्रभाव' (Hawthorne Effect) कहा जाता है।
प्रयोगात्मक अध्ययन आमतौर पर महंगे और समय-साध्य होते हैं।
वित्तीय सीमाएँ (Financial Constraints): उच्च लागत के कारण, प्रयोगात्मक अध्ययन को वित्तीय समर्थन प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।
समय की बाधाएँ (Time Constraints): प्रयोगात्मक डिज़ाइन तैयार करना, डेटा एकत्र करना, और परिणामों का विश्लेषण करना बहुत समय ले सकता है, जो कई मामलों में व्यवहार्य नहीं हो सकता है।
कई मामलों में, सभी संभावित विचलन (confounding variables) को नियंत्रित करना असंभव होता है।
अज्ञात कारक (Unknown Factors): कुछ कारक जिन्हें शोधकर्ता पहचान नहीं सकते, वे भी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।
समूह समानता (Group Equivalence): भले ही समूहों का चयन यादृच्छिक रूप से किया जाए, यह सुनिश्चित करना मुश्किल होता है कि वे सभी संभावित तरीकों में समान हों।
प्रयोगात्मक स्थितियों में, प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाएँ अस्वाभाविक हो सकती हैं।
प्रयोगात्मक संकेत (Experimental Cues): प्रतिभागी यह अनुमान लगा सकते हैं कि शोधकर्ता क्या देख रहे हैं, और इसके अनुसार प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
सामाजिक वांछनीयता पूर्वाग्रह (Social Desirability Bias): प्रतिभागी यह सोच सकते हैं कि उन्हें कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए, न कि वे वास्तव में क्या सोचते या करते हैं।
कई प्रयोगात्मक अध्ययन अल्पकालिक होते हैं और लंबे समय में स्वतंत्र चर के प्रभाव का आकलन नहीं करते।
स्थायित्व (Durability): यह स्पष्ट नहीं हो सकता है कि प्रभाव कितने समय तक स्थायी रहेंगे।
दीर्घकालिक प्रभाव: कुछ प्रभाव जो केवल लंबे समय के बाद प्रकट होते हैं, उनका आकलन करना कठिन हो सकता है।
प्रयोगात्मक अध्ययन कभी-कभी सांस्कृतिक और संदर्भीय अंतर को नजरअंदाज कर सकते हैं।
सांस्कृतिक भिन्नता (Cultural Variability): एक विशेष संस्कृति में जो प्रभाव देखा जाता है, वह दूसरी संस्कृति में लागू नहीं हो सकता है।
संदर्भ पर निर्भरता (Context Dependence): प्रयोग के संदर्भ में बदलाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे उन्हें अन्य संदर्भों में लागू करना कठिन हो जाता है।
प्रयोगात्मक अध्ययन, वैज्ञानिक अनुसंधान में अपने अद्वितीय लाभों के बावजूद, कई सीमाओं का सामना करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि शोधकर्ता इन सीमाओं को पहचानें और अपने अध्ययन को इस तरह से डिजाइन करें कि वे इन समस्याओं को कम कर सकें। इन सीमाओं की समझ और उन्हें ध्यान में रखते हुए, शोधकर्ता अधिक विश्वसनीय और मान्य परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। यह भी आवश्यक है कि प्रयोगात्मक अध्ययन के परिणामों की व्याख्या और उनके उपयोग में सावधानी बरती जाए, विशेषकर जब उन्हें व्यापक संदर्भों में लागू किया जा रहा हो।