अर्द्ध-विकसित देशों में तकनीकी भूमिका

Shilu Sinha
Created At - 2023-09-14
Last Updated - 2024-08-28

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अर्द्ध-विकसित देशों के आर्थिक विकास में तकनीकी की भूमिका का वर्णन

अल्पविकसित राष्ट्र अपने संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करके तेजी से विकास करने का प्रयास करते हैं। उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे सही तकनीक और प्रौद्योगिकी का चयन करें। अल्पविकसित राष्ट्रों की मुख्य समस्या यह होती है कि वे अपने आर्थिक और उद्योगिक विकास को बढ़ाने के लिए उपलब्ध संसाधनों का सबसे अच्छा रूप से उपयोग नहीं कर पाते हैं। इस स्थिति में, उन्हें उत्पादन की तकनीक का चयन करना होता है जो उनके पास उपलब्ध उत्पादन संसाधनों के साथ सही संयोजन में अधिक सफलता प्राप्त कर सकती है।

डॉ. ए. के सेन के अनुसार, "आधुनिक योजना की सफलता निर्यात व्यापार और योजना के रूप पर नहीं निर्भर करती है, बल्कि यह नियोजन के लिए चुनी गई तकनीक पर निर्भर करती है। यदि किसी कारणवश गलत तकनीक का चयन किया जाता है, तो यह न केवल योजना की असफलता का खतरा बढ़ाता है, बल्कि योजना के प्रति विश्वास भी कम हो सकता है।" इसलिए, तकनीक का चयन योजना की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आमतौर पर, हर प्रकार की अर्थव्यवस्था के लिए एक ही तकनीक का सहारा नहीं लिया जाता, बल्कि यह तकनीक उनके उद्देश्यों और संसाधनों के आधार पर अलग-अलग होती है।

तकनीक के प्रकार (Types of Technique):-

सामान्य रूप से तकनीक का वर्गीकरण निम्नवत् किया जाता है :
(i) श्रम प्रधान तकनीक
(ii) पूंजी प्रधान तकनीक

अर्द्धविकसित और पूँजी-प्रधान तकनीक:

अर्द्धविकसित देशों में तकनीक के चयन की समस्या काफी जटिल है। यहाँ पर कुछ विशेष अर्थशास्त्री लोग श्रम-प्रधान तकनीक का समर्थन करते हैं, जैसे कि प्रोफेसर नर्म्स, लूइस, येल ब्रोजन, किंडलबस्गर, कुजनेट्स, बर्ट होसलिट्ज, मेयर और वाल्डविन, और अन्य। उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था के विकास के लिए श्रम-प्रधान तकनीक अधिक सहायक हो सकती है।

1. श्रम प्रधान तकनीक:

श्रम प्रधान तकनीक उन तकनीकों को दर्शाती है जो अधिक मानव श्रम पर निर्भर करती हैं और पूंजी के उपयोग को न्यूनतम करती हैं। यह तकनीक अर्द्धविकसित देशों के लिए कई लाभकारी हो सकती है:

I. रोजगार के अवसर:

श्रम प्रधान तकनीक छोटे और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देती है, जिससे ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सकता है। यह तकनीक स्थानीय स्तर पर उत्पादन को बढ़ावा देती है और छोटे पैमाने पर व्यवसायों को प्रोत्साहित करती है, जिससे बेरोजगारी की समस्या को दूर किया जा सकता है।

II. आत्मनिर्भरता:

इस तकनीक के माध्यम से देशों को विदेशों से तकनीकी ज्ञान और मशीनों की कमी को कम किया जा सकता है, जिससे देश आत्मनिर्भर बन सकते हैं और विदेशी आयात पर निर्भरता घट सकती है।

III. मुद्रा-स्फीति में कमी:

जब अधिक वस्तुएं स्थानीय रूप से उत्पादित होती हैं, तो बाजार में वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ जाती है। इससे वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहती हैं और मुद्रा-स्फीति कम होती है।

IV. विकेन्द्रीकरण:

श्रम प्रधान तकनीक के उपयोग से उत्पादन ग्रामीण क्षेत्रों में भी होता है, जिससे शहरीकरण की समस्या कम होती है। इससे शहरों पर भीड़भाड़ कम होती है और संसाधनों का संकेन्द्रण घटता है।

V. उपभोग का ऊँचा स्तर:

जब श्रमिकों को काम मिलता है और उनकी आय बढ़ती है, तो उनका उपभोग स्तर भी बढ़ता है। यह उनके जीवन स्तर में सुधार करता है और उनकी समग्र जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।

VI. प्रदूषण में कमी:

छोटे और कुटीर उद्योगों के कारण प्रदूषण कम होता है। बड़े कारखानों की तुलना में ये छोटे उद्योग पर्यावरण पर कम प्रभाव डालते हैं।

VII. आयात में कमी:

इस तकनीक के प्रयोग से विदेशी मशीनों और तकनीकों की आवश्यकता कम होती है, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होती है।

VIII. सामाजिक लागतों में कमी:

श्रम प्रधान तकनीक के उपयोग से सामाजिक उपरिव्यय में कमी होती है क्योंकि इसके लिए कम बड़े निर्माण स्थान और सीमित यातायात की आवश्यकता होती है।

IX. प्रशासनिक साधनों की बचत:

छोटे पैमाने पर उत्पादन से प्रशासनिक और परिचालन लागत कम होती है। इसके लिए कम स्थान और कम संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे प्रशासनिक साधनों की बचत होती है।

X. शीघ्र उत्पादन:

इस तकनीक का उपयोग करने से उत्पादन प्रक्रिया जल्दी शुरू हो जाती है और छोटे पैमाने पर काम करना आसान होता है।

XI. शहरी-ग्रामीण संतुलन:

श्रम प्रधान तकनीक से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादन का संतुलन बना रहता है, जिससे दोनों क्षेत्रों में समान आर्थिक विकास संभव होता है।

2. पूंजी प्रधान तकनीक:

पूंजी प्रधान तकनीक उन तकनीकों को दर्शाती है जो पूंजी और मशीनरी पर अधिक निर्भर करती हैं और कम मानव श्रम की आवश्यकता होती है। यह तकनीक भी अर्द्धविकसित देशों के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है:

I. तेज आर्थिक विकास:

पूंजी प्रधान तकनीक के उपयोग से उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार होता है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है क्योंकि अधिक धन निवेश और बचत के माध्यम से आर्थिक गतिविधियां तेज होती हैं।

II. जीवन-स्तर में वृद्धि:

पूंजी प्रधान तकनीक के माध्यम से उत्पादन की लागत कम होती है, जिससे वस्तुओं की कीमतें घटती हैं और जीवन-स्तर में सुधार होता है।

III. उत्पादन में वृद्धि:

यह तकनीक श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाती है, जिससे उत्पादन की क्षमता में वृद्धि होती है और अधिक वस्तुएं उत्पादित होती हैं।

IV. श्रम-शक्ति का उचित प्रयोग:

पूंजी प्रधान तकनीक का उपयोग उस श्रम-शक्ति का उचित उपयोग सुनिश्चित करता है जो अर्द्धविकसित देशों में उपलब्ध होती है। यह श्रम को उच्च गुणवत्ता वाले कामों में लगाने में मदद करता है।

V. रोजगार में वृद्धि:

आर्थिक विकास की गति बढ़ने से नए उद्योग और व्यवसाय खुलते हैं, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।

VI. आर्थिक और सामाजिक उपरिव्यय का विकास:

पूंजी प्रधान तकनीक का उपयोग सामाजिक और आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को बढ़ावा देता है, जो सामाजिक सुधारों के लिए महत्वपूर्ण होता है।

VII. प्राविधिक प्रगति के लाभ:

इस तकनीक के उपयोग से प्राविधिक विकास होता है और आधुनिक तकनीकी प्रगति की ओर प्रोत्साहन मिलता है।

VIII. मितव्ययिताएँ:

पूंजी प्रधान तकनीक के उपयोग से बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है, जिससे मितव्ययिता प्राप्त होती है और वित्तीय स्थिरता में सुधार होता है।

IX. विकास प्रक्रिया का व्यापक प्रभाव:

इस तकनीक का व्यापक प्रभाव होता है क्योंकि नए उद्योग और व्यवसाय खुलते हैं, जो विकास की गति को तेज करते हैं।

X. वातावरण का उन्नति:

पूंजी प्रधान तकनीक का उपयोग प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद करता है, जिससे पर्यावरण की स्थिति में सुधार होता है।

निष्कर्ष -

अर्द्धविकसित देशों को अपनी विशेष परिस्थितियों और संसाधनों के अनुसार दोनों प्रकार की तकनीकों का संतुलित उपयोग करना चाहिए। पूंजी प्रधान तकनीक का उपयोग औद्योगिक विकास और अधोसंरचना के निर्माण में किया जा सकता है, जबकि श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग कृषि और उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में अधिक प्रभावी हो सकता है। इससे वे आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं और सामाजिक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

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