बाल अपराध उस अपराध को कहते हैं जो 7 से 18 वर्ष की आयु के बीच के किसी बच्चे द्वारा किया गया हो। यदि कोई बच्चा कानून या समाज के नियमों के खिलाफ कार्य करता है, तो उसे बाल अपराध माना जाता है। 7 वर्ष से कम उम्र के बच्चे द्वारा किए गए समाज विरोधी कार्य को अपराध नहीं माना जाता। इस प्रकार, बाल अपराध में आयु एक महत्वपूर्ण तत्व है और अलग-अलग देशों में बाल अपराधियों की आयु सीमा भी भिन्न होती है।
बाल अपराध के कारण एक जटिल विषय है, जिसे किसी एक या दो कारणों से स्पष्ट नहीं किया जा सकता। विभिन्न समाजशास्त्रियों और अपराधशास्त्रियों ने इस पर गहरा अध्ययन किया है और कई कारणों की पहचान की है:
टूटे परिवार वे होते हैं जिनमें पति-पत्नी के बीच अलगाव हो या कोई सदस्य अपराधी जीवन जी रहा हो। ऐसे परिवारों में बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं। माता-पिता द्वारा अत्यधिक मद्यपान, बच्चों के प्रति क्रूरता, अवैध धंधों से आजीविका, या अनैतिक कार्यों के लिए बच्चों को मजबूर करना, ये सब टूटे परिवार की विशेषताएँ हैं। ऐसे माहौल में बच्चे अपराधी गतिविधियों की ओर बढ़ सकते हैं जैसे चोरी, जुआ, शराब पीना, या अनैतिक कार्य करना।
बच्चों का मनोरंजन उनकी ज़िंदगी में बहुत महत्वपूर्ण होता है। अगर बच्चे अश्लील साहित्य, अपराधी कथानक, या अश्लील चलचित्रों की ओर आकर्षित होते हैं, तो इससे उनकी मनोवृत्तियाँ प्रभावित हो सकती हैं। बुरी संगति और खेल के गलत तरीके भी अपराधी व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।
कुछ लोग बच्चों को अपराधी गिरोहों में शामिल कर उन्हें अपराध करवाते हैं। ये लोग बच्चों को प्रलोभन देते हैं और बाद में भय दिखाकर उन्हें अपराध करने के लिए मजबूर करते हैं।
सांस्कृतिक विषमताएँ से तात्पर्य उस स्थिति से है जब बच्चे अपने माता-पिता के आदर्शों और अपने साथियों के व्यवहार में बड़ा अंतर महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, माता-पिता के आदर्श समाज की अपेक्षाओं से अलग हो सकते हैं। सैलिन ने पाया कि ऐसे बच्चों की प्रवृत्ति अपराध की ओर बढ़ जाती है। इसका कारण यह है कि बच्चे माता-पिता के आदर्शों को अपनाने में असहज होते हैं और अपनी पसंद के अनुसार नया व्यवहार अपनाने के लिए अपराध की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
बच्चों का हृदय और मस्तिष्क बहुत संवेदनशील होते हैं। जब समाज में नैतिकता में कमी आती है, तो इसका प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है। नैतिक पतन के चलते बच्चों में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, क्योंकि वे ऐसे व्यवहार को अपनाने लगते हैं जो समाज की नैतिक मान्यता के खिलाफ होते हैं।
भारत में जाति आधारित भेदभाव भी एक प्रमुख कारण है। कुछ जातियों को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जबकि अन्य जातियों के लोग गरीबी और उपेक्षा का सामना करते हैं। निम्न जातियों और अनुसूचित जातियों के बच्चे अक्सर उपेक्षित और अकेला महसूस करते हैं, जिससे वे अपराध की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं।
निर्धनता के कारण बच्चों को अच्छी शिक्षा और स्वस्थ मनोरंजन की सुविधाएँ नहीं मिल पातीं। इसके साथ ही, निर्धनता के चलते माता-पिता की ओर से उपेक्षा और कभी-कभी शारीरिक दंड भी होता है। इससे बच्चों में प्रतिशोध की भावना उत्पन्न होती है। जब ये बच्चे संपन्न परिवारों के बच्चों को देखते हैं, तो उनमें हीनता और ईर्ष्या का भाव पैदा होता है, जो अपराध की ओर ले जा सकता है।
आर्थिक अपकर्ष की स्थिति में व्यापार में हानि होती है, बेरोजगारी बढ़ती है, और सामान्य निर्धनता में वृद्धि होती है। इस समय माता-पिता की बेरोजगारी के कारण बच्चों पर निगरानी और नियंत्रण समाप्त हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप बच्चे अपराध की ओर बढ़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत में आर्थिक संकट के दौरान बाल अपराध की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी थी, विशेषकर महानगरों में।
मानसिक संघर्ष, हीनता की भावना, और बुद्धि की कमी भी बाल अपराध के कारण हो सकते हैं। जिन बच्चों को परिवार में प्रेम और समर्थन नहीं मिलता, वे अपराध की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं।
इस प्रकार, बाल अपराध विभिन्न सांस्कृतिक और आर्थिक कारणों से उत्पन्न हो सकता है, और इसे समझने के लिए कई पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।