निर्धनता का कुचक्र एक ऐसी स्थिति है जब किसी देश में गरीबी का चक्कर लगा रहता है। अर्थव्यवस्था में कमी के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति पहले से भी खराब होती है, और इसका परिणाम यह होता है कि वे और भी गरीब हो जाते हैं। इस समस्या को "निर्धनता का कुचक्र" कहा जाता है।
निर्धनता के कुचक्र का अर्थ है कि निर्धनता खुद ही निर्धनता को बढ़ाती है। इसका मतलब है कि निर्धनता का कुचक्र एक ऐसा वृत्ताकार प्रक्रिया है जिसमें निर्धनता का सिक्का दिन-रात निर्धनता ही बना रहता है। सारांश में, निर्धनता के कुचक्र से हम उस संबंध को दर्शाते हैं जिसमें कारण और परिणाम का अंतर नहीं किया जा सकता है। प्रोफेसर हिगिंस इसे 'पहले मुर्गी या अंडा' के सवाल के रूप में प्रस्तुत करते हैं, यानी कि ‘आर्थिक विकास का मार्ग अनेक दुश्चक्रों से भरा होता है।’
दुश्चक्र की व्याख्या -
निर्धनता के कुचक्र की प्रक्रिया को समझाने के लिए हम एक सामान्य व्यक्ति का उदाहरण ले सकते हैं। उदाहरण के रूप में, एक व्यक्ति को पर्याप्त खाद्य नहीं मिलता है। इसके कारण, वह कमजोर हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, उसकी कार्यक्षमता कम होती है, जिसका अर्थ है कि वह निर्धन है, और उसकी आय भी कम होती है। यह फिर से इसका परिणाम होता है कि उसे पर्याप्त खाद्य सामग्री नहीं मिलती है, और इस प्रकार, यह समस्या आगे बढ़ती रहती है।
चित्र 1 में दिखाई गई स्थिति को हम इस तरीके से व्यक्त कर सकते हैं कि 'व्यक्ति इसलिए गरीब है क्योंकि वह पहले से ही गरीब है।'
यही समस्या एक व्यक्ति पर ही नहीं, बल्कि पूरे आर्थिक प्रणाली पर लागू होती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि एक देश इसलिए गरीब होता है क्योंकि वह पहले से ही गरीब है। प्रोफेसर नर्क्स ने भी यह कहा है कि निर्धनता के कुचक्र का मतलब है कि संज्ञान-मंडल की तरह कुछ शक्तियाँ ऐसे तरीके से घूमती हैं कि वे एक-दूसरे के साथ क्रिया-प्रतिक्रिया करती हैं और निर्धन देश को निर्धनता की स्थिति में ही बनाए रखती हैं।
निर्धनता के कुचक्र का चित्रण (Illustration of Vicious Circle of Poverty)
चित्र 1
उपर्युक्त विश्लेषण से हमें निर्धनता के कुचक्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं:
निर्धनता खुद को बढ़ाती है, जिससे गरीब व्यक्ति और भी गरीब होते जाते हैं।
निर्धनता एक चक्रीय या वृत्ताकार ढंग से बढ़ती है, जिसमें कारण और परिणाम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
निर्धनता का प्रभाव समय के साथ बढ़ता है, जिससे लोग और भी अधिक गरीब होते जाते हैं।
यह एक निरंतर प्रक्रिया है जो गरीबों को हमेशा नीचे की ओर खींचती रहती है।
निर्धनता का कुचक्र एक नकारात्मक घटक से शुरू होता है, जो अगले नकारात्मक घटक का कारण और परिणाम दोनों होता है।
निर्धनता के कुचक्र के प्रमुख पक्ष - निर्धनता के कुचक्र के मुख्य पक्ष निम्नलिखित हैं:
यह कुचक्र पूंजी पक्ष से जुड़ा होता है, जिसमें अर्द्ध-विकसित देशों में लोगों की आय इतनी कम होती है कि वे पैसे बचाने और निवेश करने में असमर्थ रहते हैं। इसका मतलब है कि वह पूंजी निर्माण करने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं जुटा सकते हैं।
इस प्रक्रिया को एक चित्र के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है, जिससे स्पष्ट होता है कि कम बचत के कारण लोग अपनी पूंजी को नहीं बढ़ा सकते हैं।
चित्र 2
चित्र 2 में दिखाया गया है कि आर्थिक पिछड़ापन और पूँजी की कमी के कारण उत्पादकता का स्तर कम होता है। इसका परिणाम होता है कि लोगों की आय का स्तर भी नीचे जाता है। नीचे की आय के स्तर पर, लोगों की बचत करने की क्षमता और इच्छा भी कम हो जाती है। बचत में कमी विनियोग के स्तर को भी कम बना देती है। इसके परिणामस्वरूप, पूँजी निर्माण की दर भी कम होती है और अर्थव्यवस्था आर्थिक पिछड़ेपन में फँस जाती है।
इस चित्र में हमने यह दिखाया है कि कम विनियोग की वजह से पूँजी कम होती है और इससे आर्थिक पिछड़ापन की समस्या बढ़ती है। इसलिए हम इस पक्ष को "निर्धनता चक्र का पूर्ति पक्ष" कहते हैं।
कुचक्र का पूर्ति पक्ष (Supply Side of Vicious Circle of Poverty) :
कम आय→कम बचत→कम विनियोग→कम पूँजी निर्माण→कम उत्पादकता→कम आय
निर्धनता कुचक्र का माँग पक्ष या कम माँग का कुचक्र यह है कि अर्द्ध-विकसित राष्ट्रों में पूँजी की मांग सीमित होती है। अर्थव्यवस्थाएँ पर्याप्त मात्रा में निवेश को प्रोत्साहित करने में असमर्थ रहती हैं, जिसके कारण गरीबी का कुचक्र कार्यात्मक रूप से बना रहता है।
चित्र 3
इस चक्र को हम चित्र 3 की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं। चित्र में दिखाया गया है कि आर्थिक पिछड़ेपन के कारण लोगों की उत्पादकता कम होती है और आय का स्तर भी नीचा रहता है। इसके कारण लोगों की खरीददारी क्षमता भी कम होती है, जिससे बाजार का आकार सीमित हो जाता है। सीमित बाजार की वजह से विनियोग को प्रोत्साहन नहीं मिलता। विनियोग के स्तर कम होने के कारण पूँजी निर्माण की मात्रा भी कम होती है, जो आर्थिक पिछड़ेपन को बढ़ावा देती है।
निर्धनता के कुचक्र का माँग पक्ष (Demand Side of Vicious Circle of Poverty) :
कम आय → कम माँग या कम क्रय शक्ति → कम निवेश → कम पूँजी निर्माण → कम उत्पादकता → कम आय
समीकरणों के आधार पर निर्धनता के कुचक्र
1. आय निर्भर करती है विनियोग (पूँजी निर्माण) पर अर्थात् आय विनियोग की फलन है:
Y=f(I)
2. विनियोग बचत पर निर्भर करता है अर्थात् विनियोग बचत की फलन है:
I=f(S)I = f(S)I=f(S)
3. बचत आय से जुड़ा हुआ समीकरण यह है कि आय निर्भर करती है बचत आय पर, अर्थात् बचत आय की फलन है:
S=f(Y)S = f(Y)S=f(Y)
इस तरह,
1. आय में वृद्धि पूँजी (विनियोग) पर निर्भर करती है,
2. पूँजी में वृद्धि बचत पर निर्भर करती है,
3. बचत में वृद्धि स्वयं आय पर निर्भर करती है।
इस प्रकार, निर्धनता का कुचक्र चलता है और अर्द्ध-विकसित देशों में आर्थिक विकास की दर लगभग शून्य (Zero) होती है।
गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए निम्नलिखित तीन प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं:
गरीबी के दुश्चक्र से बाहर निकलने के लिए सबसे पहले बचत को बढ़ाया जाना चाहिए और उसे उत्पादन कार्यों में निवेश किया जाना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
व्यक्तिगत व्ययों में कमी:
शादी-विवाह और रीति-रिवाज पर होने वाले व्ययों को कम किया जाना चाहिए। शान और शौक पर अनावश्यक व्यय नहीं करना चाहिए या कम-से-कम करना चाहिए। इससे बचाई गई राशि को बचत के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
सरकार की भूमिका:
सरकार को ऐच्छिक बचत योजनाओं पर जोर देना चाहिए। जैसे कि पेंशन योजनाएं, बचत प्रमाण पत्र, और अन्य बचत योजनाएं। यदि ऐच्छिक बचतें कम हों, तो राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) में परिवर्तन कर बचतों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए अनिवार्य बचत योजनाओं को अपनाया जा सकता है, जैसे कि सामाजिक सुरक्षा कर (Social Security Tax)।
संस्थागत सुधार:
बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि वे लोगों की बचत को सुरक्षित और लाभदायक निवेश के रूप में परिवर्तित कर सकें। इसके लिए ब्याज दरों को आकर्षक बनाया जा सकता है।
बाजारों का विस्तार किया जाना चाहिए ताकि वस्तु की मांग बढ़े और निवेश करने वालों को प्रेरणा मिले। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
योजनात्मक मुद्रा नीति:
मुद्रा की नीति को योजनाबद्ध तरीके से अपनाया जाना चाहिए ताकि मुद्रा की पूर्ति बढ़ सके और मौद्रिक आय और बाजारों का विस्तार हो सके। इससे उत्पादकों को अपने उत्पादों के लिए बड़ा बाजार मिलेगा और वे उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित होंगे।
सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश:
सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जाना चाहिए ताकि आधारभूत संरचना (Infrastructure) में सुधार हो सके और निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहन मिल सके। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आम लोगों की आय में वृद्धि होगी।
संतुलित विकास की नीति:
संतुलित विकास की नीति अपनाकर निवेश किया जाना चाहिए ताकि एक उद्योग में निवेश होने से दूसरे उद्योग में मांग बढ़ सके। उदाहरण के लिए, अगर कृषि क्षेत्र में निवेश किया जाता है, तो इससे कृषि उपज बढ़ेगी और कृषि यंत्रों की मांग बढ़ेगी, जिससे यंत्र निर्माण उद्योग को लाभ होगा।
3.पिछड़ेपन में सुधार -
गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए अल्प विकसित देशों को अपने पिछड़ेपन में सुधार करना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
शिक्षा का प्रसार:
शिक्षा का व्यापक प्रसार किया जाना चाहिए ताकि लोग उच्च कौशल और ज्ञान प्राप्त कर सकें। इससे वे अधिक उत्पादनशील बन सकेंगे और उनकी आय में वृद्धि होगी।
तकनीकी ज्ञान में वृद्धि:
तकनीकी ज्ञान और कौशल में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि लोग आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर सकें और उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार कर सकें। इसके लिए तकनीकी प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की जा सकती है।
प्रबंधकीय प्रशिक्षण:
प्रबंधकीय प्रशिक्षण सुविधाओं में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि उद्यमी और प्रबंधक अपने व्यवसाय को अधिक प्रभावी ढंग से चला सकें। इससे उद्यमिता को प्रोत्साहन मिलेगा और नई नौकरियों का सृजन होगा।
स्वास्थ्य सुधार:
समाज में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार किया जाना चाहिए ताकि जनसंख्या की कुशलता बढ़े और वे अधिक आय अर्जित करने योग्य बन सकें। स्वस्थ जनसंख्या अधिक उत्पादक होती है और उनका जीवन-स्तर बेहतर होता है।
सामाजिक सुधार:
समाज में सामाजिक सुधार किए जाने चाहिए ताकि जाति, धर्म, और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त किया जा सके। इससे समाज के सभी वर्गों को विकास के समान अवसर मिलेंगे और गरीबी का उन्मूलन हो सकेगा।
इन उपायों को अपनाकर गरीबी के दुश्चक्र को तोड़ा जा सकता है और आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हुआ जा सकता है। गरीबी के कुचक्र को समाप्त करने के लिए सरकार, समाज, और व्यक्तिगत स्तर पर संगठित प्रयासों की आवश्यकता होती है। केवल आर्थिक सुधार ही नहीं, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक सुधार भी महत्वपूर्ण हैं ताकि समग्र विकास संभव हो सके।